ऑटिज्म को लेकर समाज में बहुत बड़ी भ्रांति है, अक्सर इसे एक बीमारी की तरह लिया जाता है और जब बीमारी की तरह लिया जाता है तो इसके इलाज में तरह-तरह की दवाइयां और उपचार के अन्य साधनों का उपयोग किया जाता है और बस यही से इसके इलाज की गति गलत दिशा में जाने लगती है, तो आज हम आपको यह बताना चाहते हैं की ऑटिज्म एक न्यूरो डाइवर्सिटी है यानी एक अलग तरह का ब्रेन।
इसका मतलब यह नहीं कि यह ब्रेन आम जनमानस के ब्रेन से खराब है , इसका मतलब यह नहीं कि इस ब्रेन के लोग जीवन में कुछ कर नहीं सकते, इसका मतलब यह नहीं कि यह एक बीमारी की तरफ जाने वाला ब्रेन है बल्कि इसका मतलब यह होता है कि यदि किसी भी बच्चे को ऑटिज्म है तो बच्चा आगे चलकर जब बड़ा होगा तो उसको बोलने की समस्या नहीं होगी , ऑटिज्म के बच्चों में समस्या आगे चलकर यह होती है की उन्हें जो पसंद होता है बहुत ज्यादा पसंद होता है और उसे बार-बार करना चाहते हैं जिसे मनो- चिकित्सक ऑब्सेशन कहते हैं ।
ऑटिज्म के लोगों में जिस चीज की धुन हो जाती है तो वह उसे बहुत ज्यादा करते हैं उदाहरण के तौर पर अगर उन्हें खाना अच्छा लग गया तो बहुत ज्यादा खाना खाने लगते हैं और यदि उनको सिगरेट की आदत लग गई , पसंद आ गया , तो वे सिगरेट के चेन स्मोकर हो जाते हैं ।
दूसरी समस्या ऑटिज्म के लोगों में यह होती है कि वह दूसरों के भावनाओं को समझकर उसके भावना अनुसार व्यवहार नहीं कर पाते जिसे इमोशनल रिसिप्रोकेशन की कमी बोला जा सकता है । ऑटिज्म के लोग बेहद ईमानदार और सच्ची बात कहने वाले लोग होते हैं , जिसकी वजह से इनकी लोगों से दोस्ती बनाने में कठिनाई होती है और यदि दोस्ती हो भी गई तो वह ज्यादा दिन चलती नहीं , टूट जाती है ।
दोस्ती टूटने के पीछे का कारण वही होता है की ऑटिज्म के लोग जो उन्हें अच्छा लगता है वही बोलते हैं वह दूसरे के दृष्टिकोण को समझने में नाकाम हो जाते हैं , और समझौता वादी तो बिल्कुल भी नहीं होते ऐसी अवस्था में ऑटिज्म का व्यक्ति अपने जीवन में सफल होने के बावजूद भी अकेला हो जाता है और क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जब वह समाज से कट जाता है , अकेले में हो जाता है तो उसे भयानक चिंता और भय घेर लेते हैं और इनका भय और चिंता इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि उनको दवाइयां का सहारा लेना पड़ता है , तो अगर यह पूछा जाए कि ऑटिज्म का इलाज क्या है तो हमारे विचार के अनुसार ऑटिज्म के लोग बड़े होकर हाइपरएक्टिव अति चंचल नहीं होते , 90% लोग बड़े होकर बोलते हैं इसलिए ऐसा कोई भी इलाज जो बच्चों को बुलवाने के लिए किया जा रहा है या उनको शांत करने के लिए मालिश किया जा रहा है जिसे ऑक्यूपेशनल थेरेपी कहा जाता है , किया जा रहा है या उनसे कुछ करवाया जा रहा है या उन्हें कुछ सिखाया जा रहा है और यह सब जोर जबरदस्ती के साथ किया जा रहा है तो यह सारे इलाज के उपाय अंततः निरर्थक साबित होते हैं।
ऑटिज्म के इलाज का लक्ष्य यह होना चाहिए कि जब बच्चा बड़ा हो तो वह दूसरे की भावनाओं के अनुरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन कर सके, इमोशनल रिसिप्रोकेशन कर सके, फ्लैक्सिबल हो , अपनी बात पर अड़ा न रहे और बहुत ज्यादा उसमें रिपीट करने की आदत जिसे ऑब्सेशन कहते हैं ना हो।
ऐसा लक्ष्य रखकर जब हम एक चाइल्ड लेड पैरेन्टिंग करते हैं तो बच्चे में सबसे ज्यादा बदलाव देखने को मिलते हैं।
डॉ टीआर यादव
MBBS, MD - Pediatrics Understanding Autism Key Facts and Parenting Tips